न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: |
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम || 6||
न-नहीं; तत्-वह; भासयते-आलोकित करता है; सूर्यः-सूर्य न-न तो; शशाङ्कः-चन्द्रमा; न-न तो; पावकः-अग्नि; यत्-जहाँ; गत्वा-जाकर न-कभी नहीं; निवर्तन्ते-वापस आते हैं; तत्-धाम-उसके धाम; परमम्-परम; मम-मेरा ।
BG 15.6: न तो सूर्य, न ही चन्द्रमा और न ही अग्नि मेरे सर्वोच्च लोक को प्रकाशित कर सकते हैं। वहाँ जाकर फिर कोई पुनः इस भौतिक संसार में लौट कर नहीं आता।
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यहाँ श्रीकृष्ण दिव्य क्षेत्र के स्वरूप की संक्षिप्त जानकारी देते हैं। इस आध्यात्मिक क्षेत्र को प्रकाशित करने के लिए सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह स्वतः प्रकाशित है। भौतिक क्षेत्र माया से निर्मित है। जबकि दिव्य क्षेत्र का निर्माण योगमाया द्वारा होता है। यह माया के द्वंद्वों और दोषों से परे और सभी प्रकार से पूर्ण है। यह सत्-चित-आनन्द अर्थात् नित्य, सर्वज्ञ और आनन्दस्वरूप है। दिव्य क्षेत्र में एक आध्यात्मिक आकाश है जिसे परव्योम कहते हैं जिसमें भगवान के ऐश्वर्य और वैभवों से सम्पन्न असंख्य लोक हैं। भगवान के अनन्त रूप जैसे-कृष्ण, राम, नारायण आदि के इस आध्यात्मिक आकाश में अपने-अपने लोक हैं। वहाँ वे नित्य अपने भक्तों के साथ निवास करते हैं और दिव्य लीलाएँ करते हैं। ब्रह्मा श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहते हैं-
गोलोक-नाम्नि निज-धाम्नि तले च तस्य
देवी महेश-हरि-धामसु तेषु तेषु।
ते ते प्रभाव-निचया विहिताश्च येन
गोविन्दम् आदि-पुरुषम् तमहं भजामि ।।
(ब्रह्मसंहिता श्लोक-43)
"इस आध्यात्मिक आकाश में गोलोक भगवान श्रीकृष्ण का निजी लोक है। आध्यात्मिक आकाश में नारायण, शिव, दुर्गा आदि के लोक भी सम्मिलित हैं। मैं परम पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करता हूँ जिनके वैभवों की महिमा से यह संभव है।" श्रीकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक के संबंध में ब्रह्मा पुनः वर्णन करते हुए कहते हैं
आनन्द-चिन्मय-रस-प्रतिभाविताभिस्
ताभिर्य एव निज-रूपतया कलाभिः।
गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतो
गोविन्दमादि-पुरुषं तमहं भजामि।।
(ब्रह्मसंहिता श्लोक-37)
"मैं परम प्रभु गोविन्द की आराधना करता हूँ जो गोलोक में राधा, जो उनके ही अपने रूप का विस्तार है, के साथ निवास करते हैं। उनकी नित्य सहचारिणी सखियाँ हैं जो सदैव आनंद से परिपूर्ण रहती हैं और चौंसठ कलाओं से संपन्न हैं।" वे भक्त जो भगवान को पा लेते हैं वे उनके सर्वोच्च लोक में जाते हैं और उनकी लीलाओं में भाग लेते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो जीवात्मा वहाँ प्रवेश करती है वह 'संसार' अर्थात् जीवन-मृत्यु के संसार को पार कर लेती है।